Thursday, November 21, 2024
हिंदी समाचार पोर्टल


कोरोना की दवा- और उस पर होनें वाला ‘राष्ट्रवाद’

कोरोना की बीमारी और उसकी रोक-थाम के लिए बनाई जाने दवा समूचे विश्व नें चर्चा का विषय बना हुआ हैं।…

By हेमलता , in दुनिया  , at August 20, 2020 Tags: ,


कोरोना की बीमारी और उसकी रोक-थाम के लिए बनाई जाने दवा समूचे विश्व नें चर्चा का विषय बना हुआ हैं। यही कारण हैं कि WHO (world health organisation) को डर हैं कि, विकसीत देश इसका पूर्ण रूप से अधिकार कर सम्भोग करेंगे। जबकि दवा गरीब देशो तक उचित मात्रा में उपलब्ध नहीं होगी। WHO चीफ टेड्रॉस अडानोम गेब्रिएसिस ने एक दिन पहले ही ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ (Vaccine Nationalism) को रोकने के लिए अपिल की हैं। किसी भी वैक्सीन पर किसी देश की राष्ट्रवाद का मुद्दा नया नहीं हैं।

क्सा हैं दवा की राष्ट्रवादिता का मुद्दा ?

किसी भी वैक्सीन पर, किसी देश या शक्ति का एक मात्र अधिकार होना। जिसे वह केवल अपने राज्य के नागरिकों के लिए सुरक्षित रखता हैं, उसे वैक्सिन या दवा पर राष्ट्रवाद कहा जाता हैं। तथा जब कोई देश वैक्सीन को अन्य देशों में पहुचने से पहलें ही उन्हें अपने घरेलू / स्थानीय बाजार और अपने नागरिकों के लिए एक तरह से सुरक्षित करने की कोशिश करता है। इसके लिए संबंधित देश की सरकार वैक्सीन बनाने वाले के साथ पहले ही आयात से संबंधित अग्रीमेंट कर लेती है।

महा शक्तियों की प्रतिक्रिया

सारा विश्व कोरोना काल से पीड़ित हैं। परंतु अभी तक इसकी दवा नहीं बन पाई है। अधिकतर देशों में सरकारी व निजी रूप सें कोरोना की दवा बनाने के प्रयास जारी हैं। कुछ का शुरुआती स्तर पर इंसानी जॉंच चल रही है। कहीं किसी का आखरी स्तर में है। लेकिन अभी से अमेरिका, ब्रिटेन, जापान फ्रांस, जर्मनी जैसे महा शक्तियां वैक्सीन बनाने वाले संस्थानो तथा देशो के साथ पहले ही आयात से संबंधित अग्रीमेंट कर चुके हैं। जापान, अमेरिका, ब्रिटेन और ईयू ने सर्वप्रथम अपने यहां वैक्सीन को उपलब्ध करने के लिए कई अरबों रुपये खर्च कर डाले हैं। इन देशों ने कोरोना वैक्सीन बनाने के करीब पहुंचीं संस्थाओ (फाइजर इंक, जॉनसन & जॉनसन तथा एस्ट्रा जेनेका) कंपनियों के साथ अरबों रुपये का एग्रीमेंट कर लिया है। जबकि, इस बात की पुष्टि नहीं की जा सकती कि इन कंपनियों की वैक्सीन कितनी सफल होगी। जहॉं इतनी राष्ट्रवाद का मामला सामने आ रहा हैं, वहीं कुछ देशो का दावा हैं कि उन्होने कोरोना इलाज करने वाली दवा खोज ली हैं।

राष्ट्रवाद के बीच गरीब देश

अमीर देशों के इस राष्ट्रवाद को देखते हुए WHO को यह डर सता रहा है कि प्री-प्रचेज़ीग एग्रीमेंट से कोरोना की दवा उन सभी देशों के पहुँच से बाहर हो जाएगी, जो स्वयं इसमें निर्मित करने में असक्षम हैं। सम्पूर्ण विश्व की आबादी देखी जाए 700-800करोड़ के क़रीब है जिसमें सभी देशों तक वैक्सीन पहुंचाना असंभव हो सकता है। महाशक्तियों के मुकाबले असक्षम देश अपने देशों में यह दवा लाने में असक्षम हो जाएंगे तथा इस दवा की क़ीमत में बढ़ोतरी हो जाएगी जिन्हें ग़रीब देश ख़रीदने में सक्षम नहीं हो पाएंगे

Advertisement

Comments