गोबर गैस प्लांट कैसे बनाये घर में साथ में खाद मुफ्त : केंद्रीय न्यूज़
जानिए कैसे गांव के किसान फूसाराम ने गोबर गैस प्लांट बनाकर कर गैस और खाद्य फ्री में कर लिया तैयार…
जानिए कैसे गांव के किसान फूसाराम ने गोबर गैस प्लांट बनाकर कर गैस और खाद्य फ्री में कर लिया तैयार
राजस्थान के जोधपुर में स्थित छोटे से गांव डोली में रहने वाले फूसाराम जी एक साधारण से किसान हैं लेकिन उनका दिमाग किसी इंजीनियर से कम नहीं है। इन्होंने अपने गांव में गोबर गैस प्लांट तैयार किया है। यह ऊपर से खुलने वाली एक टंकी है, जो 1100 लीटर की है। टंकी को गोबर से भर कर उसे सील कर दिया जाता है। प्लास्टिक को सील करने के लिए बाजार में मिलने वाले लट्ठे जैसे MCL आदि का इस्तेमाल होता है।
एक गाय रहने पर भी कर सकते हैं तैयार:
1 महीने तक टंकी के अंदर फर्मेंटेशन की प्रक्रिया चलती है। इसमें लगे वॉल से सलरी निकलती है, जिसका इस्तेमाल किसान खाद में मिलाने के लिए करते हैं। लिक्विड फॉर्म में इसका इस्तेमाल करने के लिए ड्रिप इरिगेशन प्रक्रिया होती है। इसका इस्तेमाल किसानों के लिए खेत में भी होता है। कम से कम एक गाय रहने पर भी किसान गोबर गैस प्लांट बना कर उसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
कैसे बनाया जाता है सलरी और गैस?
एक तरफ जहां सलरी के रूप में अच्छे गुणवत्ता की खाद प्राप्त होती है, वहीं दूसरी तरफ भोजन पकाने के लिए गैस भी मिल जाती है। गोबर गैस प्लांट बनाने के लिए सबसे पहले 20-25 किलोग्राम गोबर लेकर उसे 20-25 लीटर पानी में मिला दिया जाता है। इसके बाद टंकी का ढक्कन खोल कर इसमें गोबर और पानी के बने इस मिश्रण को डाल दिया जाता है। यह मिश्रण टंकी में स्टोर हो जाती है। इतना करने के बाद उसे एयर टाइट कर लिया जाता है ताकि बाहर की हवा अंदर प्रवेश न कर सकें। इस प्रक्रिया में लगभग 20 से 25 किलोग्राम सलरी निकलती है।
आकार के अनुसार बढ़ती है टंकी की क्षमता:
किसानों के पास जितनी बड़ी टंकी होती है, उसमें गैस बनाने की क्षमता उतनी अधिक होती है। यदि इस टंकी को बड़ा कर दिया जाए तो उसकी क्षमता अधिक होने के कारण घर के सभी घरेलू कार्यों के लिए यह गैस प्रदान कर सकती है। किसान सलरी का इस्तेमाल छन्नी से छान कर भी कर सकते हैं अथवा वे चाहें तो सीधे किसी बर्तन से सलरी को निकालकर पौधे में डाल सकते हैं।
गैस बाहर न निकलने का भी लगाया है जुगाड़:
फूसाराम जी सलरी का इस्तेमाल अपने बेर के पौधे के लिए खाद के रूप में करते हैं। वे 6 साल से यूरिया-डीएपी का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। इससे उनके बेर के पौधे में न तो वृद्धि की कमी हुई है और न ही नाइट्रोजन की। उन्होंने जीवामृत डी कंपोजर का निर्माण किया है। कई बार टंकी के अंदर गैस का प्रेशर अधिक हो जाने से गैस बाहर निकल जाता है। फूसाराम जी ने बड़े टायर के 4 ट्यूब को आपस में जोड़कर इसे प्लांट से कनेक्ट कर दिया है, जिससे गैस प्रेशर से भी बाहर नहीं निकल पाता है।
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